लेखनी कहानी -27-Apr-2023
पृष्ठभूमि
आचार्य
रामचन्द्र शुक्ल ने कहानी को उपन्यास से अलगाने के उद्देश्य से, अंग्रेज़ी की 'शॉर्ट स्टोरी' की तर्ज पर छोटी कहानी' कहा है, किन्तु वे अंग्रेज़ी की 'शॉर्ट स्टोरी' से हिन्दी कहानी को भिन्न पहचान भी देते हैं, कहानी के "इतने रूप रंग हमारे सामने आए हैं कि सबके सब पाश्चात्य लक्षणों और आदर्शों के भीतर नहीं समा सकते।" वहीं वे यह भी लक्ष्य करते हैं कि हिन्दी कहानी के विकास में "कवियों का भी पूरा योग रहा।" शुक्लजी के इस कथन के आलोक में सर्वप्रथम तो ध्यान जाता है। 19वीं सदी के उन प्रारम्भिक वर्षों की ओर, जब एक ओर फोर्ट विलियम में गिलक्राइस्ट के निर्देशन में उर्दू और हिन्दी गद्य की दागबेल डाली जा रही थी और दूसरी ओर मुंशी सदासुखलाल व सैयद ईशा अल्ला खां स्वतन्त्र रूप से हिन्दी गद्य का ठाठ खड़ा कर रहे थे। इन सबमें अकेले ईशा ही थे, जिनका ध्यान हिन्दी की पहली मौलिक कहानी लिखने की ओर गया और उन्होंने उदयभान चरित या रानी केतकी की कहानी लिखी, जिसमें 'हिन्दी को छोड़कर और किसी बोली का पुट' न था। सैयद ईशा अपने वक्त के प्रतिष्ठित उर्दू शायर थे।
आज अधिकांश आलोचक हिन्दी कथा साहित्य के उद्भव पर बात करते हुए, बहुत चतुराई से, ईशा और 'रानी केतकी की कहानी' को बढ़ा जाते हैं और हिन्दी कथा- साहित्य के उद्भव को सौ साल आगे खींच लाते हैं। यहाँ तक कि देवकी नंदन खत्री और उनके चन्द्रकान्ता का उल्लेख भी काफी किन्तु परन्तु के साथ होता है। किशोरी लाल गोस्वामी का भी यही हश्र होता, अगर उन्होंने इन्दुमती कहानी न लिखी होती (प्रकाशन: (1900)। इन्दुमती भी यद्यपि है संयोग पर आधारित मनोरंजन प्रधान कहानी ही, किन्तु बांग्ला गल्प पैटर्न की और आधुनिक भाषा संस्कारों में पनी होने के कारण सहज स्वीकार्य हो गई। हिन्दी कथा आलोचना परम्परा और आधुनिकता के द्वन्द्व से कभी मुक्त नहीं हो पाई। एक तरफ वह प्रेमचन्द को अपना आदर्श मानती है कि उन्होंने सरल प्रवाही हिन्दुस्तानी जबान में, चुटीली मुहावरेदानी के साथ आधुनिक भारतीय जीवन के प्रश्नों और चुनौतियों की कहानियाँ लिखीं, वहीं दूसरी तरफ वह ईशा और सरशार की उस धर्म- निरपेक्ष भाषा-शिल्प परम्परा की अनदेखी भी करती है, जिसके सम्पर्क से प्रेमचन्द सरस प्रवाही हिन्दुस्तानी जबान और चुटीली मुहावरेदानी वाला शिल्प विकसित कर सके।